आज कोई बुरी खबर पढने को न मिलेगी
न होगा किसी गुनहगार से आज सामना
न मेरे दिल-ओ-दिमाग को जद्दो-जहद करनी पडेगी
न देखूँगा किसी लाचार माँ-बाप की तस्वीर आज
न पढूँगा कोई खबर जिसमे हो गुण्डा राज
न होगी किसी जंग की बात, न कोई सर कलम होगा
दुनिया तो चल ही रही है, खबरों से मिला गम आज थोडा कम होगा
न दहशत आज आएगी दिल में किसी दुष्कर्म को पढकर
न नफरत दिल में पनपेगी अपने ही धर्म से लडकर
मिलेगा जो सुकूँ आज, दिल कि खुशफहमि से
धुल जाएगा वो कल ही खबरों कि बेरहमी से
आज कोई अखबार नहीं आया
आज कोई बुरी खबर पढने को न मिलेगी
दिल की नर्म गलियों में, आज कुछ तो बे-खबर कलियाँ खिलेंगी
-निरुपमा
A good attempt at poetry. Good luck dear.
ReplyDeleteThank you sis! :)
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